Thursday 28 February 2019

सिंधु_जल_संधि (आईडब्ल्यूटी): जल_बंटवारे_से_संबंधित_समझौता

सिंधु_जल_संधि (#आईडब्ल्यूटी): जल_बंटवारे_से_संबंधित_समझौता.


जल प्रकृति का इंसान को दिया हुआ सबसे अनमोल उपहार है जिसकी वजह से पृथ्वी पर जीवन संभव है, क्योंकि यहाँ पानी और जीवन को संभव बनाने वाली अन्य सभी जरुरी चीजें उपलब्ध हैं। देश के जीवविज्ञान से लेकर उनकी अर्थव्यवस्था तक, देश के अस्तित्व के सभी पहलुओं के लिए जल एक महत्वपूर्ण संसाधन है।

सिंधु जल संधि, सिंधु एवं इसके सहायक नदियों के जल के अधिकतम उपयोग के लिए भारत सरकार और पाकिस्तान सरकार के बीच की गई संधि है। #19_सितंबर_1960_को_कराची (पाकिस्तान) में पुनर्निर्माण और विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय बैंक (अब विश्व बैंक) की मध्यस्थता में भारत के तत्कालीन #प्रधानमंत्री_जवाहर_लाल_नेहरू और पाकिस्तान के #राष्ट्रपति_अयूब खान_द्वारा इस संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे।

इस संधि के अंतर्गत तीन पूर्वी नदियों (रावी, व्यास, सतलुज और उनकी सहायक नदियां) और तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब और उनकी सहायक नदियां) के जल वितरण और हिस्सेदारी की व्यवस्था की गई है।

#ऐतिहासिक_पृष्ठभूमि

यह संघर्ष उस समय उत्पन हुआ था जब नवगठित राज्य भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी प्रणाली से सिंचाई हेतु पानी के बंटवारे एवं प्रबंधन के लिए मतभेद शुरू हो गया था। पाकिस्तान को इस बात की आशंका थी कि अगर भारत सिंधु एवं उसकी सहायक नदियों के जल पर पूरी तरह से नियंत्रण कर लेता है तो पाकिस्तान में कृषि एवं अन्य कार्यों के लिए पानी की समस्या उत्पन्न हो जाएगी। जबकि भारत की दलील यह थी कि चूँकि सिंधु एवं उसकी सहायक नदियों का प्रवाह भारत में अधिक है इसलिए वे इसके अधिकतम पानी का उपयोग करेंगें। इसलिए, 19 सितंबर, 1960 को कराची (पाकिस्तान) में पुनर्निर्माण और विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंक (अब विश्व बैंक) की मध्यस्थता में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे।

#सिंधु_जल_संधि_का_संक्षिप्त_प्रावधान

1. इस संधि का अनुच्छेद 1 संधि में प्रयुक्त शब्दों की परिभाषा के बारे में बताता है। उदाहरण के लिए "सिंधु", "झेलम," "चिनाब," "रावी," "व्यास " एवं "सतलुज" नदियों, उनको जोड़ने वाले झीलों और इनकी सभी सहायक नदियों के नाम का मतलब।

2. समझौते के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़े दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है। पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए होगा लेकिन समझौते के तहत इन नदियों के पानी का कुछ सीमित इस्तेमाल का अधिकार भारत को दिया गया है, जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी आदि। इस अनुबंध में बैठकों एवं साइट इंस्पेक्शन आदि का भी प्रावधान है।

3. समझौते के अनुसार भारत निम्न उपयोगों छोड़कर पश्चिमी नदियों के जल प्रवाह को नहीं रोकेगा:

(क) घरेलू उपयोग

(ख) अप्रयुक्त जल प्रवाह का उपयोग

(ग) कृषि के लिए उपयोग

(घ) पनबिजली के लिए उपयोग

4. भारत को विभिन्न प्रयोजनों के लिए पश्चिमी नदियों के 3.6 एम.ए.एफ. पानी के भंडारण हेतु निर्माण करने की अनुमति दी गई है। लेकिन भारत द्वारा अब तक भंडारण के लिए कोई निर्माण कार्य नहीं किया गया है।

5. भारत को 1 अप्रैल, 1960 से कुल सिंचित फसल क्षेत्र (आईसीए) के अलावा 7,01,000 एकड़ में कृषि कार्य करने की अनुमति दी गई है। लेकिन इस 7,01,000 एकड़ अतिरिक्त सिंचित फसल क्षेत्र (आईसीए) में से केवल 2,70,000 एकड़ को ही विकसित किया जा सका है (यानी 1 अप्रैल, 1960 के समझौते के अनुसार कुल आईसीए 9,12,477 एकड़) और 0.5 एम.ए.एफ. पानी हर साल से वहां जारी किया जाता है । 2011-12 के दौरान कुल सिंचित फसल क्षेत्र (आईसीए) 7,84,955 एकड़ थी।

6. इस संधि के तहत भारत और पाकिस्तान दोनों देशों ने सिंधु जल आयुक्त के रूप में एक स्थायी पद का गठन किया है। इसके अलावा दोनों देशों ने एक स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) का गठन किया है जो संधि के कार्यान्वयन के लिए नीतियां बनाता हैं। यह आयोग प्रत्येक वर्ष अपनी बैठकें एवं यात्राएं आयोजित करता है और दोनों सरकारों को अपने काम की रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। यह आयोग अब तक 117 यात्राएं और 110 बैठकों का आयोजन कर चुका है।

7. इस समझौते के प्रावधानों के अनुसार दोनों पक्षों को प्रत्येक तीन महीने में नदी के प्रवाह से संबंधित जानकारी और हर साल कृषि उपयोग से संबंधित जानकारी का आदान प्रदान करना आवश्यक हैं।

8. इस समझौते के प्रावधानों के अनुसार भारत का दायित्व है कि वह जल के भंडारण और जल विद्युत परियोजनाओं की जानकारी पाकिस्तान को उपलब्ध कराए।

9. इस समझौते के प्रावधानों के अनुसार भारत का दायित्व है कि वह सद्भावना के संकेत के रूप में हर साल 1 जुलाई से 10 अक्टूबर के बीच पाकिस्तान को बाढ़ से संबंधित आंकड़ो की जानकारी प्रदान करे जिससे पाकिस्तान को अग्रिम बाढ़ राहत उपायों को शुरू करने में सहायता मिल सके। ज्ञातव्य हो कि दोनों देशों के बीच बाढ़ से संबंधित आंकड़ो की हर साल समीक्षा की जाती है।

10. इस समझौते के तहत उत्पन्न होने वाले मतभेदों और विवादों के निपटारे के लिए दोनों आयुक्त आपस में चर्चा करते हैं लेकिन सही निर्णय ना हो पाने की स्थिति में तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ आर्ब्रिट्रेशन में जाने का भी रास्ता सुझाया गया है।

यह संधि दोनों देशों के बीच हुए तीन युद्धों के बावजूद अभी भी जारी है और भारत इस संधि के महत्व को जानता है। इसलिए भारत हर बार दोनों पक्षों के बीच "आपसी सहयोग और विश्वास" की बात करता है और अभी भी इस पर काम करने की कोशिश कर रहा है। इस प्रकार यह सबसे सफल जल समझौता है जो अभी तक कायम है। लेकिन हालिया तनाव की वजह से दोनों देश इस समझौते में बदलाव की आशंका देख रहे हैं, जो जल का बटवारा ना होकर आगे नदियों के बटवारे के रूप में ही सामने उभर कर आ सकता है।

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